सांस्कृतिक गौरव बढाती मातृभाषा

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२१ -०२-२०१७ विशव मातृभाषा दिवस की आप सब को हार्दिक शुभ कामना
मायड़ भासा बोलता जिणनै आवे लाज अश्या कपुता सू दुःखी सगळो देस समाज
जिन्हें अपनी मातृभाषा बोलने में शर्म आती है वे लोग अपने देश व् समाज को दुखी करते है तथा मेरा आप सबसे यही निवेदन है आप सब अपनी मातृभाषा को महत्त्व दे विशव मातृभाषा दिवस की आप सबको हार्दिक शुभ कामना
अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस २१ फ़रवरी को मनाया जाता है। १७ नवंबर, १९९९ को यूनेस्को ने इसे स्वीकृति दी।

इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवँ सांस्कृतिक विविधता और बहुभाषिता को बढ़ावा मिले।

लोकेश रावल ,जय हिन्द जय भारत

 

 

ੴ श्री गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज की ३५० वी जयंती की आपको हार्दिक शुभ कामना ॐ

श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज का (जन्म: २२ दिसम्बर १६६६, मृत्यु: ७ अक्टूबर १७०८) सिखों के दसवें गुरु थे। उनके पिता श्री गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के उपरान्त ११ नवम्बर सन १६७५ को वे गुरू बने। वह एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। सन १६९९ में बैसाखी के दिन उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।

श्री गुरू गोबिन्द सिंह ने सिखों की पवित्र ग्रन्थ श्री गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित किया। बिचित्र नाटक को उनकी आत्मकथा माना जाता है। यही उनके जीवन के विषय में जानकारी का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह दसम ग्रन्थ का एक भाग है। दसम ग्रन्थ, गुरू गोबिन्द सिंह की कृतियों के संकलन का नाम है।

उन्होने मुगलों या उनके सहयोगियों (जैसे, शिवालिक पहाडियों के राजा) के साथ १४ युद्ध लड़े। धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया, जिसके लिए उन्हें ‘सर्वस्वदानी’ भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं।

गुरु गोविंद सिंह जहां विश्व की बलिदानी परम्परा में अद्वितीय थे, वहीं वे स्वयं एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता भी थे। उन्होंने स्वयं कई ग्रंथों की रचना की। वे विद्वानों के संरक्षक थे। उनके दरबार में ५२ कवियों तथा लेखकों की उपस्थिति रहती थी, इसीलिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था। वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे।

श्री गुरु गोबिन्द सिंहजी का जन्म

श्री गुरु गोविंद सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु श्री गुरु तेगबहादुर जी  और माता गुजरी के घर पटना में २२ दिसम्बर १६६६ को हुआ था। जब वह पैदा हूए थे उस समय उनके पिता असम मे धर्म उपदेश को गये थे। उन्होंने बचपन मे फारसी, संस्कृत की शिक्षा ली और एक योद्धा बनने के लिए सैन्य कौशल सीखा।

श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी  की तीन पत्नियाँ थीं। 21जून, 1677 को 10 साल की उम्र में उनका विवाह माता जीतो के साथ आनंदपुर से 10 किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में किया गया। उन दोनों के 3 पुत्र हुए जिनके नाम थे – जुझार सिंह, जोरावर सिंह, फ़तेह सिंह। 4 अप्रैल, 1684 को 17 वर्ष की आयु में उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी के साथ आनंदपुर में हुआ। उनका एक बेटा हुआ जिसका नाम था अजित सिंह। 15 अप्रैल, 1700 को 33 वर्ष की आयु में उन्होंने माता साहिब देवन से विवाह किया। वैसे तो उनका कोई संतान नहीं था पर सिख धर्म के पन्नों पर उनका दौर भी बहुत प्रभावशाली रहा।[1]

श्री गुरु गोबिन्द सिंह मार्ग

आनन्दपुर साहिब को छोड़कर जाना और वापस आना

अप्रैल 1685 में, सिरमौर के राजा मत प्रकाश के निमंत्रण पर गुरू गोबिंद सिंह ने अपने निवास को सिरमौर राज्य के पांवटा शहर में स्थानांतरित कर दिया | सिरमौर राज्य के गजट के अनुसार, राजा भीम चंद के साथ मतभेद के कारण गुरु जी को आनंदपुर साहिब छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था और वे वहाँ से टोका शहर चले गये| मत प्रकाश ने गुरु जी को टोका से सिरमौर की राजधानी नाहन के लिए आमंत्रित किया। नाहन से वह पांवटा के लिए रवाना हुऐ| मत प्रकाश ने गढ़वाल के राजा फतेह शाह के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने के उद्देश्य से गुरु जी को अपने राज्य में आमंत्रित किया था। राजा मत प्रकाश के अनुरोध पर गुरु जी ने पांवटा मे बहूत कम समय में उनके अनुयायियों की मदद से एक किले का निर्माण करवाया। गुरु जी पांवटा मे लगभग तीन साल के लिए रहे और कई ग्रंथों की रचना की। <ग्रंथों की सूची >

सन 1687 में नादौन की लड़ाई में, गुरु गोबिंद सिंह, भीम चंद, और अन्य मित्र देशों की पहाड़ी राजाओं की सेनाओं ने अलिफ़ खान और उनके सहयोगियों की सेनाओ को हरा दिया था । विचित्र नाटक (गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रचित आत्मकथा) और भट्ट वाहिस के अनुसार, नादौन पर बने व्यास नदी के तट पर गुरु गोबिंद सिंह आठ दिनों तक रहे और विभिन्न महत्वपूर्ण सैन्य प्रमुखों का दौरा किया।

भंगानी के युद्ध के कुछ दिन बाद, रानी चंपा (बिलासपुर की विधवा रानी) ने गुरु जी से आनंदपुर साहिब (या चक नानकी जो उस समय कहा जाता था) वापस लौटने का अनुरोध किया जिसे गुरु जी ने स्वीकार किया । वह नवंबर 1688 में वापस आनंदपुर साहिब पहुंच गये ।

1695 में, दिलावर खान (लाहौर का मुगल मुख्य) ने अपने बेटे हुसैन खान को आनंदपुर साहिब पर हमला करने के लिए भेजा । मुगल सेना हार गई और हुसैन खान मारा गया। हुसैन की मृत्यु के बाद, दिलावर खान ने अपने आदमियों जुझार हाडा और चंदेल राय को शिवालिक भेज दिया। हालांकि, वे जसवाल के गज सिंह से हार गए थे। पहाड़ी क्षेत्र में इस तरह के घटनाक्रम मुगल सम्राट औरंगज़ेब लिए चिंता का कारण बन गए और उसने क्षेत्र में मुगल अधिकार बहाल करने के लिए सेना को अपने बेटे के साथ भेजा।

खालसा पंथ की स्थापना

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का नतृत्व सिख समुदाय के इतिहास में बहुत कुछ नया ले कर आया। उन्होंने सन 1699 में बैसाखी के दिन खालसा जो की सिख धर्म के विधिवत् दीक्षा प्राप्त अनुयायियों का एक सामूहिक रूप है उसका निर्माण किया।

सिख समुदाय के एक सभा में उन्होंने सबके सामने पुछा – कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है? उसी समय एक स्वयंसेवक इस बात के लिए राज़ी हो गया और गुरु गोबिंद सिंह उसे तम्बू में ले गए और कुछ देर बाद वापस लौटे एक खून लगे हुए तलवार के साथ। गुरु ने दोबारा उस भीड़ के लोगों से वही सवाल दोबारा पुछा और उसी प्रकार एक और व्यक्ति राज़ी हुआ और उनके साथ गया पर वे तम्बू से जब बहार निकले तो खून से सना तलवार उनके हाथ में था। उसी प्रकार पांचवा स्वयंसेवक जब उनके साथ तम्बू के भीतर गया, कुछ देर बाद गुरु गोबिंद सिंह सभी जीवित सेवकों के साथ वापस लौटे और उन्होंने उन्हें पंज प्यारे या पहले खालसा का नाम दिया।

उसके बाद गुरु गोबिंद जी ने एक लोहे का कटोरा लिया और उसमें पानी और चीनी मिला कर दुधारी तलवार से घोल कर अमृत का नाम दिया। पहले 5 खालसा के बनाने के बाद उन्हें छटवां खालसा का नाम दिया गया जिसके बाद उनका नाम गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह रख दिया गया। उन्होंने क शब्द के पांच महत्व खालसा के लिए समझाया और कहा – केश, कंघा, कड़ा, किरपान, कच्चेरा।[2]

रचनायें

  • जाप साहिब : एक निरंकार के गुणवाचक नामों का संकलन
  • अकाल उस्तत: अकाल पुरख की अस्तुति एवं कर्म काण्ड पर भारी चोट
  • बचित्र नाटक : गोबिन्द सिंह की सवाई जीवनी और आत्मिक वंशावली से वर्णित रचना
  • चण्डी चरित्र – ४ रचनाएँ – अरूप-आदि शक्ति चंडी की स्तुति। इसमें चंडी को शरीर औरत एवंम मूर्ती में मानी जाने वाली मान्यताओं को तोड़ा है। चंडी को परमेशर की शक्ति = हुक्म के रूप में दर्शाया है। एक रचना मार्कण्डेय पुराण पर आधारित है।
  • शास्त्र नाम माला : अस्त्र-शस्त्रों के रूप में गुरमत का वर्णन।
  • अथ पख्याँ चरित्र लिख्यते : बुद्धिओं के चाल चलन के ऊपर विभिन्न कहानियों का संग्रह।
  • खालसा महिमा : खालसा की परिभाषा और खालसा के कृतित्व। ੴੴੴੴੴੴੴ ॐ ॐ ॐ

आपका शुभेच्क

लोकेश रावल ,चडूआल

टैली एकाउंटिंग Tally erp9 notes in hindi pdf


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बढती तकनिकी को देखते हुए मेने टैली एकाउंटिंग के notes हिंदी मै लिख कर pdf फाइल बनाई है.. जो आपके जीवन मै बहुत काम आयेगी , तथा ऊपर एक लिंक है तथा डाउनलोड पर click करो जिससे  टैली एकाउंटिंग की pdf फाइल download हो जाएगी अपना दोस्त …… लोकेश रावल टैली क्यों tally by loksa२ और आगे भी मै टैली के नोट्स बनाता रहूँगा .. जय हिन्द वन्देमातरम ….

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मै लोकेश रावल ब्लॉग को चलाता हु जो एजुकेशन ब्लॉग है इसमें शिक्षा के बारे आपको बताता रहूँगा  मै तथा इस ब्लॉग में दोस्तों आपको कुछ भी अच्छा लगे तो प्लीज फोलो करना  …… जय श्री राम,…… वन्दे भारतमातरम

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ॐवंदेभारतमातरम्ॐ

क्या आपको पता है कि 25 दिसम्बर क्यों मनाया जाता है..??? 

🚩आइये आपको बताते हैं 25 दिसम्बर का वास्तविक इतिहास…

🚩अभी #यूरोप, #अमरीका और #ईसाई जगत में इस समय #क्रिसमस डे की धूम है। अधिकांश लोगों को तो ये पता ही नहीं है कि यह क्यों मनाया जाता है।

🚩कुछ लोगों का भ्रम है कि इस दिन ईशदूत #ईसा मसीह का जन्मदिन पड़ता है पर #सच्चाई यह है कि 25 दिसम्बर का ईसा मसीह के जन्मदिन से कोई सम्बन्ध ही नहीं है। #एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था ।

🚩वास्तव में #पूर्व में 25 दिसम्बर को ‘#मकर संक्रांति’ पर्व आता था और #यूरोप-अमेरिका धूम-धाम से इस दिन #सूर्य उपासना करता था। #सूर्य और पृथ्वी की गति के कारण #मकर संक्रांति लगभग 80 वर्षों में एक दिन आगे खिसक जाती है।

🚩सायनगणना के अनुसार 22 दिसंबर को #सूर्य उत्तरायण की ओर व 22 जून को दक्षिणायन की ओर गति करता है। #सायनगणना ही प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है। जिसके अनुसार 22 दिसंबर को #सूर्य क्षितिज वृत्त में अपने दक्षिण जाने की सीमा समाप्त करके उत्तर की ओर बढ़ना आरंभ करता है। #इसलिए 25 को मकर संक्रांति मनाते थे।

🚩विश्व-कोष में दी गई जानकारी के अनुसार #सूर्य-पूजा को समाप्त करने के उद्देश्य से #क्रिसमस डे का प्रारम्भ किया गया । 

🚩ईस्वी सन् 325 में निकेया (अब इजनिक-तुर्की) नाम के स्थान पर सम्राट कांस्टेन्टाइन ने प्रमुख #पादरियों का एक सम्मेलन किया और उसमें ईसाईयत को प्रभावी करने की योजना बनाई गई।

🚩पूरे #यूरोप के 318 पादरी उसमें सम्मिलित हुए। उसी में #निर्णय हुआ कि 25 दिसम्बर मकर संक्रान्ति को #सूर्य-पूजा के स्थान पर ईसा पूजा की परम्परा डाली जाये और इस बात को छिपाया जाये कि ईसा ने 17 वर्षों तक #भारत में धर्म शिक्षा प्राप्त की थी। इसी के साथ ईसा मसीह के मेग्डलेन से विवाह को भी नकार देने का निर्णय इस सम्मेलन में किया गया था। और बाद में #पहला क्रिसमस डे 25 दिसम्बर सन् 336 में मनाया गया। 

🚩आपको बता दें कि #यीशु ने #भारत में कश्मीर में अपने #ऋषि मुनियों से सीखकर 17 साल तक #योग किया था बाद में वे रोम देश में गये तो वहाँ उनके स्वागत में पूरा रोम शहर सजाया गया और मेग्डलेन नाम की #प्रसिद्ध वेश्या ने उनके पैरों को इतर से धोया और अपने रेशमी लंबे बालों से यीशु के पैर पोछे थे ।

🚩बाद में #यीशु के अधिक लोक संपर्क से #योगबल खत्म हो गया और बाद में उनको सूली पर चढ़ा दिया गया तब पूरा रोम शहर उनके खिलाफ था । रोम शहर में से केवल 6 व्यक्ति ही उनके सूली पर चढ़ाने से दुःखी थे ।

🚩क्या है #क्रिसमस और संता क्‍लॉज का कनेक्शन?

🚩क्या आप जानते हैं कि #जिंगल बेल गाते हुए और लाल रंग की ड्रेस पहने संता क्‍लॉज का क्रिसमस से क्या रिश्ता है..?

🚩संता क्‍लॉज का #क्रिसमस से कोई संबंध नहीं!!

🙏🏻आपको जानकर हैरत होगी कि #संता क्‍लॉज का क्रिसमस से कोई संबंध नहीं है।

🚩ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि #तुर्किस्तान के मीरा नामक शहर के बिशप #संत निकोलस के नाम पर सांता क्‍लॉज का चलन करीब चौथी सदी में शुरू हुआ था, वे गरीब और बेसहारा बच्‍चों को तोहफे दिया करते थे।

🚩#अब न यीशु का क्रिसमिस से कोई लेना देना है और न ही  सांता क्‍लॉज से ।

फिर भी #भारत में पढ़े लिखे लोग बिना कारण का पर्व मनाते हैं ये सब #भारतीय #संस्कृति को खत्म करके #ईसाई करण करने के लिए #भारत में  #क्रिसमस डे मनाया जाता है। इसलिये आप #सावधान रहें ।

🚩ध्यान रहे हमारा #नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरु होता है ।

🚩हम महान #भारतीय #संस्कृति के महान ऋषि -मुनियों की #संतानें हैं इसलिये #अंग्रेजो का #नववर्ष मनाये ये हमें शोभा नहीं देता है ।

 

🚩क्या अंग्रेज हमारा #नव वर्ष मनाते है ?

नही!!

🚩फिर हम क्यों उनका #नववर्ष मनाएं..???

🚩क्या आपको पता है कि जितने #सरकारी कार्य है वो 31 मार्च को बन्द होकर 2 अप्रैल से नये तरीके से शुरू होते हैं क्योंकि हमारा नववर्ष उसी समय आता है ।

🚩हमारे #संतों ने सदा हमें हमारी #संस्कृति से परिचित कराया है और आज भी हमारे #हिन्दू #संत #हिन्दू संस्कृति की सुवास चारों दिशाओं में फैला रहे हैं। इसी कारण उन्हें विधर्मियों द्वारा न जाने कितना कुछ सहन भी करना पड़ा है।

🚩अभी गत वर्ष 2014 से देश में सुख, सौहार्द, स्वास्थ्य व् शांति से जन मानस का जीवन #मंगलमय हो इस लोकहितकारी उद्देश्य से #संत #आसारामजी #बापू की #प्रेरणा से #25 दिसम्बर “तुलसी पूजन दिवस” के रूप में मनाया जा रहा है। आप भी #तुलसी पूजन करके मनाये।

🚩जिस #तुलसी के पूजन से मनोबल, चारित्र्यबल व् आरोग्य बल बढ़ता है,

🚩मानसिक अवसाद व आत्महत्या आदि से रक्षा होती है।

🚩 मरने के बाद भी #मोक्ष देनेवाली #तुलसी पूजन की महता बताकर जन-मानस को #भारतीय #संस्कृति के इस सूक्ष्म ऋषिविज्ञान से परिचित कराया #संत #आसारामजी #बापू ने।

🚩धन्य है ऐसे #संत जो अपने साथ हो रहे अन्याय,अत्याचार को न देखकर #संस्कृति की सेवा में आज भी सेवारत हैं ।

🚩🇮🇳🚩 आज़ाद भारत?

एक ओंकार ही परमात्मा का सच्चा स्वरुप है

      ।। ॐੴ ।।
एक ओमकार शिव नाम
सत्य मूर्ति ब्रह्मस्वरूप
जगदपिता महादेव:
सतयुग भी सच कलयुग भी सच
पारब्रह्म शिव नाम सच।।
         ।।੧ਓ।।
ॐੴॐੴॐੴॐ

ॐ।। वंदे भारतमातरम् ।। ॐ

बिना सिंध के हिन्द कहाँ है, रावी बिन पंजाब नहीं.!
गंगा कैसे सुखी रहेगी, जब तक संग चिनाब नहीं.!”
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“लाहौर बिना तो संविधान की, अपनी बात अधूरी है.!
बिना बलूचिस्तान के कैसे कह दें, यह आज़ादी पूरी है.!”
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“आज़ादी का जश्न मनेगा, पेशावर की गलियों में.!
तभी तो खुशबू आ पाएगी, काश्मीर की कलियों में.!”
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“दिल्ली तुझे कसम है अबकी, मत रोड़े अटकाना.!
ताशकंद व शिमला जैसे, समझौते मत दोहराना.!”
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“वचन हमारा रणभूमि में, ऐसी तान बजायेंगे.!
गाड़ तिरंगा सिन्धु तट पर, वन्दे मातरम् गायेंगे.!”
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“साँप सपोलों ने दिल्ली को, आज पुन: ललकारा है.!
घोंप कटारी कह दो उनको, पकिस्तान हमारा है.!”
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“वन्दे भारत मातरम”
‘जय माँ भारती’ॐ

ॐ।। जय बंजरंग बली ।। ॐ

मंदिर एक हनुमान प्रभु का, खारुन नदी के पास बना !
रायपुर के धार्मिक स्थल, महादेव घाट के पास बसा !!

तोड़ दो उस हनुमान का मंदिर, न्यायालय ने कहलाया है !
अवैध निर्माण हुआ है कहकर, एक फ़रमान भिजाया है !!

मेरे भी आज कुछ सवाल हैं, देश के उस न्यायालय से !
संविधान के मंदिर से, और लोकतंत्र के देवालय से !!

मंदिर को तोड़ने की खातिर, ये कोई वाजिब वजह नहीं !
जिस ईश्वर ने सृष्टि बनायी, उसके लिए क्या जगह नहीं ??

क्यूँ नेताओं की कोठी के, कागज नहीं मंगवाते हो ?
क्यूँ फ़र्जी दस्तावेजों को, सही बताते जाते हो ??

क्यूँ माल्या सहारा जैसे, लोग सैकड़ों पाले हैं ?
क्यूँ कानून की धज्जी उड़ाते, काले लबादे वाले हैं ??

अवध में अब तक राम का मंदिर, तुमसे क्यूँ ना बन पाया ?
रामसेतु को उसका दर्जा, अब तक क्यूँ ना दिलवाया ??

आज भला किस मुँह से तुम, फ़िर मंदिर तोडने निकले हो !
धर्म सनातन के सीने में, कील ठोकने निकले हो ??

सुनो आज हिन्दुत्व की शक्ति, को तुमने ललकारा है !
हर घर से एक परशुराम को, खुद तुमने पुकारा है !!

हम हिन्दू भोले भाले हैं, इस धोके में मत रहना !
मंदिर को टूटने न देंगे, चाहे जो तुम कर लेना !!

जय सिया राम
जय बजरंग बली